जानें, भारतीयों में डायबिटीज के प्रति ज्‍यादा जोखिम क्‍यों है

जानें, भारतीयों में डायबिटीज के प्रति ज्‍यादा जोखिम क्‍यों है

डॉक्‍टर अनूप मिश्रा

सिंड्रोम एक्‍स (चयापचय संबंधी सिंड्रोम) के प्रति ज्‍यादा झुकाव: भारतीय सिंड्रोम एक्‍स (पेट का बड़ा घेरा, उच्‍च रक्‍तचाप, रक्‍त शर्करा का उच्‍च स्‍तर और रेंज से बाहर ब्‍लड लिपिड का मिला जुला रूप) के जोखिम क्षेत्र में हैं जो डायबिटीज की दिशा में पहला कदम होता है

जन्‍म से ही ज्‍यादा शारीरिक वसा का जोखिम: श्‍वेत वर्ण वाले लोगों के मुकाबले भारतीयों में जन्‍म से ही ज्‍यादा शारीरिक वसा या चर्बी (करीब डेढ़ गुना ज्‍यादा) का जोखिम रहता है। कई भारतीय बच्‍चे पैदाइश के समय छोटे, कम वजन वाले, ज्‍यादा रक्‍तचाप और मोटापन के शिकार होते हैं जो इस बात की आशंका बढ़ा देते हैं कि बड़े होकर वो डायबिटीज के शिकार हो जाएंगे।

इंसुलिन हार्मोन की क्रिया के प्रति प्रतिरोध: अनुवांशिक कारकों के अलावा शरीर, पेट और लिवर पर जमा अतिरिक्‍त चर्बी (नीचें देखें) मिलकर एक ऐसी प्रवृति बना देते हैं जिसमें इंसुलिन धीमा और ऐसे तरीके से काम करने लगता है जिससे उसका असर कम हो जाता है।

फैटी लीवर (बिना अल्‍कोहल के लिवर में वसा का जमा होना): भारतीयों में लिवर ऐसी जगह है जहां ज्‍यादा चर्बी जमा होती है और जो उनमें चयापचय को धीमा कर देती है। ये स्थिति शरीर में शर्करा का उत्‍पादन और वो भी खासकर रात के समय बेहद बढ़ा देती है। ऐसी चर्बी से भरे लिवर आगे चलकर निष्‍क्र‍िय हो सकते हैं, सिरोसिस का शिकार हो सकते हैं और कैंसर में भी बदल सकते हैं।

फैटी पैंक्रियाज (पैंक्रियाज में चर्बी जमा होना): हमारे शोध ये बताते हैं कि संभव है कि एक व्‍यक्ति के शरीर पर चर्बी न हो मगर पैंक्रियाज में आसानी से चर्बी जमा हो सकती है और ये इंसुलिन उत्‍पादन करने वाली कोशिकाओं के काम बंद कर देने का कारण हो सकती है।

भारतीय जीवन पद्धति के लिए अपरिचित जीवनशैली में अचानक प्रवेश: एक आधुनिक जीवनशैली में प्रवेश करना समस्‍या को बढ़ाता है और भारतीयों को डायबिटीज के ज्‍यादा करीब ले जाता है। ज्‍यादातर लोग आजकल रेडी टू ईट भोजन करना पसंद करते हैं और निष्क्रिय जीवन जीते हैं। ये जीवन शैली हमारी पारंपरिक मितव्‍ययी भारतीय जीवनशैली से बहुत अलग है और डायबिटीज के जोखिम को तेजी से बढ़ा रही है।

आनुवांशिक कारक: भारतीयों में ऐसे कई जीन का पता चला है जो भारतीय नस्‍ल को अन्‍य नस्‍लों के मुकाबले डायबिटीज के प्रति ज्‍यादा जोखिम में डालते हैं। इसके साथ ही ऐसे जीन भी हो सकते हैं जो शारीरिक चर्बी, पेट की चर्बी और चर्बी की बड़ी कोशिकाओं की प्रवृति को बढ़ाते हैं जो कि इंसुलिन के काम की क्षमता को कम करते हैं। उदाहरण के लिए हमने मायोस्‍टेटिन नामक एक जीन की पहचान की है जो भारतीयों में ज्‍यादा चर्बी और कम मांसपेशियों के लिए जिम्‍मेदार हो सकता है। ऐसे अन्‍य जीन भी हो सकते हैं जो अकेले या एक दूसरे से मिलकर अथवा खराब भोजन या शारीरिक निष्क्रियता के साथ मिलकर डायबिटीज को जन्‍म देते हैं।

(डॉक्‍टर अनूप मिश्रा की किताब 'डायबि‍टीज के साथ भी खुशहाल जीवन से साभार')

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